उत्तराखण्ड जल निगम ने मसूरी में सीवरेज व्यवस्था को सुदृढ व व्यवस्थित बनाने के लिए वर्ष 2010 में एक विस्तृत सर्वे करना शुरु किया और अंततः वर्ष 2015 से 65 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से कार्ययोजना प्रारंभ की गई। सरकारी व्यवस्था के बड़े ठेकेदार ने इस योजना को अनेक पेटीदारों ( अवैध छोटे ठेकेदारों ) से काम करना शुरु किया। पूरे मसूरी नगर पालिका क्षेत्र मे वर्षों तक सड़क खोदने व सीवर लाइन के पाइप बिछाने का कार्य किया गया। बताया जा रहा है कि स्थानीय जनता व जानकारों की सलाह को दरकिनार कर जलनिगम के अतिकुशल अधिकारियों ने सभी सुझावों को अनसुना कर छः इंच की पाइप लाइन डालने की ज़िद व सीवर चैम्बर्स की *गुणवत्ता* को मनमाने तरीके से पूरा किया है,नतीजा यह हुआ कि वर्तमान में पर्यटक नगरी में जगह -जगह चैम्बर्स ओवरफ्लो हो रहे हैं,अथवा ठप्प हो गए हैं। क्षतिग्रस्त होने से गंदगी राष्ट्रीय मार्ग सहित शहर के मॉल रोड व अन्य रास्तों में खुलेआम बहती नज़र आ रही है। जिससे मसूरी की जनता तथा पर्यटक सीवर की गंदगी के बीच आने जाने को विवश हैं।
लगभग 150 करोड़ रुपए व्यय किये जाने के बाबजूद भी मसूरी शहर खुले में बहते सीवर की गंदगी से जूझ रहा है। मंत्री , नेता व अधिकारियों की हिस्सेदारी के कारण सरकारी धन व योजना सुरसा के मुंह मे समा चुकी है।
एक नमूना जल निगम की कार्यप्रणाली का — किंक्रेग में पिक्चर पैलेस रोड पर PWD /नगर पालिका सड़क के नाले के कलवर्ट के अंदर व मुख्य सड़क के अंदर एक बड़े क्षेत्र के सीवर की गंदगी का पाइप छोटे चैम्बर में डाला गया है। बरसात में चैम्बर के मलवा आदि से बंद होने के कारण पूरी गंदगी व पानी सड़क पर किंक्रेग बाज़ार से होता हुआ बह रहा है। अनेक शिकायतों व प्रयासों के बाद PWD ने जे सी बी से जब सड़क खोदी तब पता चला कि सड़क के अंदर कलवर्ट के बीच सीवर का छोटा चैम्बर बना हुआ है। गढ़वाल जल संस्थान जो जलनिगम की *कार्यकुशलता * व कुकर्म को झेल रहा है उसे भी इस अंडर ग्राउंड चैम्बर का पता नहीं है। इसी तरह के अनेक दृष्टांत मसूरी में बहुतायत में है। जनता के पास सरकारी धन के दुरुपयोग व बंदरबांट के विरुद्ध न्यायालय का दरवाजा ही खटखटाना एक मात्र विकल्प है। सरकार व मंत्री गूंगे बहरे बनकर अपने दायित्यों का निर्वहन कर रहे हैं और स्थानीय नेता गण अपनी *भूमिका *की तलाश में तल्लीन हैं ।