
उत्तराखंड में बीते दिनों जो कुछ हुआ है, वह केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि एक सामाजिक और लोकतांत्रिक संकट भी है। धराली, उत्तरकाशी और पौड़ी में आई तबाही ने न सिर्फ घर और व्यवसाय तबाह किए, बल्कि कई परिवारों की ज़िंदगियाँ भी उजाड़ दी।
धराली आपदा की भयावहता
– बादल फटने से धराली गांव में 58 सेकंड के भीतर लाखों टन मलबा आ गया, जिससे पूरा गांव तबाह हो गया।
– कल्प केदार मंदिर, जो उत्तराखंड के पाँच केदारों में से एक था, पूरी तरह मलबे में दब गया।
– 130 से अधिक लोगों को रेस्क्यू किया गया, लेकिन कई अभी भी लापता हैं।
– स्थानीय पत्रकारों ने जान जोखिम में डालकर ग्राउंड रिपोर्टिंग की। सोशल मीडिया इंफ्लुएंसरों की चुप्पी सौरव जोशी को देख लीजिए, जो उत्तराखंड के सबसे बड़े व्लॉगर हैं। अभी तक उनके द्वारा धराली आपदा पर कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया या सहायता की पहल सामने नहीं आई है।
यह सवाल उठता है:
– क्या लोकप्रियता का मतलब सामाजिक जिम्मेदारी से मुंह मोड़ना है?
– क्या सरकार को पत्रकारों और इंफ्लुएंसरों को एक ही श्रेणी में रखना चाहिए, जब दोनों का उद्देश्य और कार्यशैली अलग।
– गुंडागर्दी, हथियारों के साथ अपहरण, और गोलीबारी जैसी घटनाएं लोकतंत्र के लिए शर्मनाक हैं।
– यह दर्शाता है कि स्थानीय प्रशासन और कानून व्यवस्था कितनी कमजोर है।