uttarkashiभटवाड़ी

मैं धराली जाना चाहता हूँ…क्योंकि वहाँ मेरे अपने तड़प रहे हैं, करन मेहरा।

मैं धराली जाना चाहता हूँ…क्योंकि वहाँ मेरे अपने तड़प रहे हैं।
घर मलबे में दब गए, पर सरकार की संवेदना अब तक दब चुकी है।

2 दिन से भटवाड़ी में प्रशासन ने मुझे रोक रखा था।
ना जाने देने की कोई वजह नहीं बताई,
शायद उन्हें डर है कि कोई जाकर सच देख ना ले,
कि कोई जाकर देश को बता ना दे कि उत्तराखंड का दिल इस वक्त कितना टूटा हुआ है।
अब रस्सियों का सहारा लेकर पहाड़ उतर रहा हूँ।
तेज़ बहाव है, ज़िंदगी का जोखिम है, लेकिन जो वहाँ हैं…उनका क्या?
जो मलबे में दबे अपनों की लाशें खुद खोद रहे हैं…
जिनके पास ना छत है, ना रोटी
क्या उनका दर्द इस दिखावटी शासन से छोटा है?

मुख्यमंत्री साहब हेलिकॉप्टर से हवाई दौरा करके लौट जाते हैं, जैसे आसमान से देख लेने भर से ज़ख्म भर जाते हों।
पर ज़मीन पर लोग आज भी सिसक रहे हैं।
सरकार के पास कैमरा है, राहत नहीं है। घोषणाएँ हैं, मगर हिम्मत नहीं है।

मैं वहाँ जाऊँगा…क्योंकि उन पीड़ितों को आसमान में हेलीकॉप्टर से फ़ोटो शूट कराने वाले नेताओं की नहीं, इंसानों की ज़रूरत है।

सरकार चाहती है कोई आपदा पीड़ितों तक न पहुंच पाए।

सरकार रास्ते रोक सकती है,
पर इंसानियत का सफ़र नहीं।
और जब सरकार संवेदनहीन हो जाए, तब इंसानियत ही सबसे बड़ा संघर्ष बन जाती है।
मैं धराली जाऊँगा..क्योंकि वो मेरे लोग हैं।

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